sad poetry in hindi on love
रहते है आजकल मेरे दिन रात बड़े बेहाल से
रहते है आजकल मेरे दिन रात बड़े बेहाल से
हो उठते है बैचेन न जाने किस के ख़्याल से
कौन देता है सदाए मुझ को नदी के उस पार से
क्यूं दौड़ा चला जाता है दिल उसकी आवाज़ से
कौन अजनबी धीरे धीरे दाखिल हो रहा है इसमें
कौन बना रहा है इसमें घर अपने एहसास से
जिसे सोचने भर से ही महक जाती है रूह मेरी
फिर मंजर क्या होगा उसकी और मेरी मुलाकात से
कौन उड़ा रहा है परिंदे आज सुबह से असमान में
कौन गा रहा है गीत मोहब्बत का आज शाम से
आज उसे आना ही पड़ेगा मेरी मोहब्बत के वास्ते
आज होगा मिलन ऐसे, जैसे झील का चांद से